भगवान सीता जी को सजाकर उनकी गोद में सर रखे थे। इन्द्रपुत्र जयन्त ने देखा तो उसे भ्रम हो गया। वह सीता जी के चरण में चोंच मारकर भागा।
सीता जी ने कुछ नहीं कहा, पर भगवान ने जान लिया। राम जी ने एक तिनका जयन्त के पीछे छोड़ दिया। भक्त के लिए सूली भी शूल है, भक्तद्रोही के लिए शूल भी सूली हो गया।
जयन्त को लगा मेरे पीछे ब्रह्म बाण लगा है। और ऐसा नहीं है कि वह उसी के पीछे लगा हो, हम सबके पीछे बाण लगा है, काल का बाण। आज चर्चा करेंगे कि इससे कैसे बचा जाता है।
जयन्त इन्द्र के पास गया, सब उसी के पास जाते हैं, इन्द्र माने इन्द्रियों का राजा, मन। पर मन तो स्वयं पल पल मरने वाला है, उसी ने तो काल का बंधन डाला है, वह रक्षा कैसे करे?
जयन्त ब्रह्मा के पास गया, ब्रह्मा माने अज, माने बुद्धि,
"अहंकार शिव बुद्धि अज मन शशि चित्त महान"
बुद्धि के पास भी मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है।<