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  • सुतीक्ष्ण माने जिसकी बुद्धि भगवान में तीक्ष्ण हो। संसार में तीक्ष्ण बुद्धि वाले तो बहुत हैं, पर वास्तव में जड़ में लगी होने से वे जड़बुद्धि ही हैं। सुतीक्ष्ण चेतनबुद्धि वाले हैं।
    सुतीक्ष्ण सरल हैं, अगस्त जी की सेवा करते हैं। गाए चराने गए थे, जामुन का वृक्ष देख भूख लग आई। तोड़ें कैसे? कोई पत्थर नहीं मिला, तो गाँठ में बंधे सालिगराम भगवान की याद आ गई।
    उसी का उपयोग किया, फल तो मिल गया, भगवान नदी में गिर गए। अब भगवान का उपयोग, फल पाने के लिए करोगे तो फल भले मिल जाएगा, भगवान दूर चले जाएँगे। भगवान कहते हैं तुम हमें नहीं चाहते, हमसे चाहते हो। और लोकेशानन्द कहता है कि भगवान तो उन्हें मिलते हैं, जो उनसे न चाहता हो, उन्हें ही चाहता हो।
    भगवान नदी में गिरे तो सुतीक्ष्ण खूब रोए, भाव से नहीं भय से, भगवान के डूब जाने के भाव से नहीं रोए, गुरु जी के भय से रोए। साँयकाल आश्रम जाकर भगवान की जगह वही जा
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