लक्ष्मण जी ने चार के बारे में पूछा- माया, ज्ञान, वैराग्य और भक्ति। राम जी ने सत्संग प्रारंभ किया, बोले- लक्ष्मण! मति, मन और चित लगाकर सुनना।
देखो, सत्संग में मति लग जाए तो अज्ञान न रहे, ज्ञान आ जाए। मन लग जाए तो कामना न रहे, वैराग्य आ जाए। और चित लग जाए तो संसार की स्मृति न रहे, भक्ति की प्राप्ति हो जाए।
माया- "मैं और मेरा" बस यही माया है। "मैं" दो हैं, सच्चा और झूठा। सच्चा मैं ब्रह्म है, झूठा मैं माया है। जैसे जब आप स्वप्न देखते हैं, तब आप ही स्वप्न देखते भी हैं, आप ही स्वप्न में दिखते भी हैं। कैसा भी स्वप्न क्यों न हो, आपके स्वप्न में आप तो होते ही हैं, आप अपने आपको ही देखते हैं, आप अपने को स्वप्न में न देखो तो स्वप्न हो सकता ही नहीं।
तो इन दो "मैं" में, जो देखने वाला "मैं" है वह ब्रह्म है, जो "मैं" दिखता है वह माया है। दूसरे शब्