बेटे की तरहकी तरह अपनी मां के कोक में रहती है बेटी,
डरी हुई सहमी है नन्ही परी बनकर दुनिया में आती है बेटी।
अपने मां के अंचल में खुद को समेट कर ,
अपने पापा के कंदोऊ पर से दुनिया को देख कर
हल्के हल्के से अपने कदम को डाल कर
परिवार मैं खुशियों की लहर लाती है बेटी...
जब उसे कोई चिंता हो तो मां के गले लग जाती है,
अपने पापा के लिए तो स्वयं मां बन जाती है...
खेलते -खुदतेअपने सपनों को देखना शुरू करती है...
हर समय अपने परिवार की लाज रखने के लिए खुद को सयम रखती है
ना जाने क्यों फिर भी बेटी से पीछे रहती है बेटी||
जब भी बेटी होती है तो कहीं उसे भोज मानाजाता है,
तो कहीं पर घर की लक्ष्मी
बेटी कू बेटों से कम समझने वालों
तुम क्या जाने एक बेटी होना
तुम क्या जानू एक बेटी का दर्द
बेटी चाहे जितनी तारकी कर ले पर
कहीं न कहीं कभी ना कभी जाने क्यों फिर